जब आप प्रेग्नेंट (Pregnant) होती हैं, तो ये बिल्कुल नैचुरल है कि आप जानना चाहें कि आपके शरीर के अंदर क्या चल रहा है — और उससे भी ज़्यादा, आपका बेबी कैसा है। यहीं पर प्रेग्नेंसी में जीन टेस्ट (Gene test in pregnancy) की भूमिका आती है। ये टेस्ट जेनेटिक एब्नॉर्मैलिटीज़ (Genetic abnormalities), क्रोमोसोमल एब्नॉर्मैलिटीज़ (Chromosomal abnormalities), या बर्थ डिफेक्ट्स (Birth defects) जैसी समस्याओं का पता अक्सर पहले ट्राइमेस्टर (First trimester) में ही लगा सकते हैं।
CDC के अनुसार, अमेरिका में हर 33 में से लगभग 1 बेबी किसी ना किसी बर्थ डिफेक्ट (Birth defect) के साथ पैदा होता है — इसी वजह से कई माता-पिता प्रीनेटल जेनेटिक टेस्टिंग (Prenatal genetic testing) को सिर्फ़ एक मेडिकल फॉर्मेलिटी नहीं, बल्कि एक ज़रूरी स्टेप मानते हैं।
इस आर्टिकल में हम बताएंगे कि ये टेस्ट आमतौर पर कब किए जाते हैं, ये कौन-कौन सी चीज़ें सामने ला सकते हैं, और कैसे तय करें कि आपके लिए क्या सही है।
प्रेग्नेंसी (Pregnancy) में जेनेटिक टेस्टिंग (Genetic testing) क्या होती है?

प्रेग्नेंसी में जेनेटिक टेस्टिंग (Genetic testing) का मकसद होता है जीन से जुड़ी बीमारियों (Genetic disorders) और बर्थ डिफेक्ट्स (Birth defects) का पता लगाना — ये आमतौर पर ब्लड सैंपल (Blood sample) या अल्ट्रासाउंड (Ultrasound) के ज़रिए किया जाता है।
आपने पहले ट्राइमेस्टर की स्क्रीनिंग टेस्ट्स (First trimester screening tests) के बारे में सुना होगा, जैसे कि मैटरनल सीरम स्क्रीनिंग (Maternal serum screening) या नुकल ट्रांसलूसेंसी स्क्रीनिंग (Nuchal translucency screening) — ये प्रेग्नेंसी की शुरुआत में ही क्रोमोसोमल एब्नॉर्मैलिटीज़ (Chromosomal abnormalities) को डिटेक्ट करने की कोशिश करते हैं।
अगर रिज़ल्ट में रिस्क ज़्यादा दिखाई देता है, तो डॉक्टर डायग्नोस्टिक टेस्ट्स (Diagnostic tests) सजेस्ट कर सकते हैं, जैसे कि कोरियोनिक विल्लस सैंपलिंग (Chorionic villus sampling - CVS) या एम्नियोसेंटेसिस (Amniocentesis)। ये टेस्ट एम्नियोटिक फ्लूइड (Amniotic fluid) की जांच करके न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट्स (Neural tube defects) या कुछ खास क्रोमोसोम एब्नॉर्मैलिटीज़ (Chromosome abnormalities) का पता लगाते हैं।
ACOG के अनुसार, हर प्रेग्नेंट महिला को — भले ही फैमिली हिस्ट्री ना हो — प्रीनेटल जेनेटिक स्क्रीनिंग टेस्ट्स (Prenatal genetic screening tests) का ऑप्शन दिया जाना चाहिए।
एक जेनेटिक काउंसलर (Genetic counselor) आपको यह तय करने में मदद कर सकता है कि आपके लिए क्या सही है।
प्रेग्नेंसी (Pregnancy) में जीन टेस्ट (Genetic test) आपके बेबी की सेहत के बारे में क्या बता सकता है?

प्रेग्नेंसी में की जाने वाली जेनेटिक टेस्टिंग (Genetic testing) आपके बेबी की हेल्थ को लेकर कई अहम जानकारियाँ देती है। ये टेस्ट, जिनमें प्रीनेटल स्क्रीनिंग टेस्ट्स (Prenatal screening tests) और डायग्नोस्टिक टेस्ट्स (Diagnostic tests) शामिल होते हैं, संभावित जेनेटिक कंडीशंस (Genetic conditions) और बर्थ डिफेक्ट्स (Birth defects) का जल्दी पता लगाने में मदद करते हैं — जिससे आप समय रहते समझदारी से फैसले ले सकें और तैयारी कर सकें।
1. जेनेटिक एब्नॉर्मैलिटीज़ (Genetic abnormalities)
प्रीनेटल टेस्ट्स फीटल DNA का एनालिसिस करके जेनेटिक एब्नॉर्मैलिटीज़ डिटेक्ट कर सकते हैं। नॉन-इनवेसिव प्रीनेटल टेस्टिंग (Non-invasive prenatal testing - NIPT) एक ब्लड टेस्ट होता है जो मां के ब्लड में मौजूद सेल-फ्री DNA की जांच करता है ताकि डाउन सिंड्रोम (Down syndrome) जैसी कंडीशंस का रिस्क पता लगाया जा सके।
- ट्राइसॉमी 21 (Trisomy 21), ट्राइसॉमी 18 (Trisomy 18), और ट्राइसॉमी 13 (Trisomy 13) जैसी क्रोमोसोमल गड़बड़ियों का पता लगाता है
- फीटस को नुकसान पहुँचाए बिना जल्दी रिस्क असेसमेंट करता है
- प्रेग्नेंसी के 10वें हफ्ते से किया जा सकता है
2. बर्थ डिफेक्ट्स (Birth defects)
प्रीनेटल स्क्रीनिंग से न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट्स (Neural tube defects) जैसे बर्थ डिफेक्ट्स का पता लगाया जा सकता है जो स्पाइनल कॉर्ड और ब्रेन को प्रभावित करते हैं। मैटरनल सीरम स्क्रीनिंग (Maternal serum screening) मां के ब्लड में कुछ खास प्रोटीन की मात्रा नापकर इन कंडीशंस का रिस्क आंकती है।
- स्पाइना बिफिडा (Spina bifida) और एनेन्सेफली (Anencephaly) जैसी स्थितियों की पहचान में मदद करता है
- इसमें अल्फा-फीटोप्रोटीन (Alpha-fetoprotein - AFP) जैसे ब्लड टेस्ट शामिल होते हैं
- आमतौर पर दूसरे ट्राइमेस्टर (Second trimester) में किया जाता है
3. डाउन सिंड्रोम (Down syndrome) और अन्य क्रोमोसोमल डिसऑर्डर्स (Chromosomal disorders)
पहले ट्राइमेस्टर में होने वाले स्क्रीनिंग टेस्ट्स जैसे नुकल ट्रांसलूसेंसी स्क्रीनिंग (Nuchal translucency screening) और मैटरनल सीरम स्क्रीनिंग को मिलाकर डाउन सिंड्रोम और अन्य क्रोमोसोमल डिसऑर्डर्स का रिस्क जाना जाता है। अगर फीटस की गर्दन की मोटाई ज़्यादा हो, तो ये हाई रिस्क इंडिकेट कर सकता है।
- डाउन सिंड्रोम (Down syndrome), ट्राइसॉमी 18 और ट्राइसॉमी 13 के लिए रिस्क आंकता है
- अल्ट्रासाउंड और ब्लड टेस्ट दोनों का उपयोग होता है
- 11 से 14 हफ्तों की प्रेग्नेंसी में किया जाता है
4. कैरियर पेरेंट्स से इनहेरिटेड कंडीशंस (Inherited conditions from carrier parents)
कैरियर स्क्रीनिंग (Carrier screening) यह जानने में मदद करता है कि माता-पिता में से कोई एक या दोनों किसी जेनेटिक डिसऑर्डर के जीन के कैरियर हैं या नहीं — जैसे कि सिस्टिक फाइब्रोसिस (Cystic fibrosis) या सिकल सेल डिज़ीज़ (Sickle cell disease)। अगर दोनों पेरेंट्स कैरियर हों, तो बेबी को यह कंडीशन इनहेरिट होने का रिस्क बढ़ जाता है।
- एक सिंपल ब्लड टेस्ट से किया जाता है
- प्रेग्नेंसी से पहले या दौरान किया जा सकता है
- संभावित हेल्थ इशूज़ की प्लानिंग और मैनेजमेंट में मदद करता है
5. सेक्स-लिंक्ड जेनेटिक कंडीशंस (Sex-linked genetic conditions)
कुछ डिसऑर्डर्स X या Y क्रोमोसोम से जुड़े होते हैं और एक जेंडर को ज़्यादा प्रभावित करते हैं। प्रीनेटल डायग्नोस्टिक टेस्टिंग (Prenatal diagnostic testing) से हीमोफीलिया (Hemophilia) या डुचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (Duchenne muscular dystrophy) जैसी स्थितियाँ पहचानी जा सकती हैं।
- सेक्स-लिंक्ड जेनेटिक कंडीशंस का रिस्क पता चलता है
- इसमें कोरियोनिक विल्लस सैंपलिंग (CVS) या एम्नियोसेंटेसिस (Amniocentesis) शामिल हो सकते हैं
- जल्दी इंटरवेंशन और मैनेजमेंट के लिए जानकारी देता है
6. रेयर डिसऑर्डर्स (Rare disorders) के इनहेरिट होने का रिस्क
एडवांस टेस्टिंग मेथड्स से फीटस के जेनेटिक मटेरियल की डीप जांच की जाती है ताकि रेयर जेनेटिक कंडीशंस का रिस्क पहचाना जा सके — खासकर अगर फैमिली हिस्ट्री हो तो ये ज़रूरी होता है।
- टे-सैक्स डिज़ीज़ (Tay-Sachs disease) जैसे रेयर डिसऑर्डर्स को डिटेक्ट करता है
- फीटस के DNA का डीटेल एनालिसिस करता है
- जल्दी फैसले लेने और केयर प्लानिंग में मदद करता है
इन सभी पॉइंट्स को समझना आपको अपनी प्रेग्नेंसी और बेबी की सेहत से जुड़ी समझदारी से फैसले लेने में सशक्त बनाता है। अपने हेल्थकेयर प्रोवाइडर या जेनेटिक काउंसलर (Genetic counselor) से बात करें कि आपके लिए कौन-से टेस्ट सही रहेंगे।
प्रेग्नेंसी (Pregnancy) की शुरुआत में जीन टेस्ट (Gene test) कब कराना चाहिए?

शुरुआती प्रेग्नेंसी में जीन टेस्ट कराने का सही समय तय करना आपके बेबी की सेहत को समझने के लिए बेहद अहम होता है। ये टेस्ट संभावित जेनेटिक कंडीशंस (Genetic conditions) की पहचान कर सकते हैं, जिससे समय पर सही फैसले और ज़रूरत पड़ने पर जल्दी इलाज की शुरुआत संभव हो जाती है।
🕒 जेनेटिक टेस्टिंग (Genetic testing) के लिए सही समय
शुरुआती प्रेग्नेंसी में जेनेटिक टेस्टिंग के लिए कुछ प्रमुख विंडो होते हैं:
पहला ट्राइमेस्टर (First Trimester: 10–13 हफ्ते)
- कोरियोनिक विल्लस सैंपलिंग (Chorionic Villus Sampling - CVS):
डाउन सिंड्रोम (Down syndrome) जैसी क्रोमोसोमल एब्नॉर्मैलिटीज़ (Chromosomal abnormalities) को डिटेक्ट करता है। - सेल-फ्री DNA टेस्टिंग (Cell-Free DNA Testing):
मां के ब्लड से कुछ खास जेनेटिक डिसऑर्डर्स की स्क्रीनिंग करता है।
दूसरा ट्राइमेस्टर (Second Trimester: 15–20 हफ्ते)
- एम्नियोसेंटेसिस (Amniocentesis):
एम्नियोटिक फ्लूइड (Amniotic fluid) की जांच कर के न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट्स (Neural tube defects) और अन्य स्थितियों की पहचान करता है।
ACOG (American College of Obstetricians and Gynaecologists) के अनुसार, ये टेस्ट आमतौर पर व्यक्तिगत रिस्क फैक्टर्स के आधार पर सजेस्ट किए जाते हैं, और इन्हें कराने से पहले अपने हेल्थकेयर प्रोवाइडर से सलाह ज़रूर लें।
जल्दी टेस्टिंग कराने का महत्व
जल्दी जेनेटिक टेस्टिंग कराने से:
- संभावित जेनेटिक डिसऑर्डर्स की पहचान हो सकती है
- मन की शांति मिलती है या ज़रूरत के अनुसार तैयारी की जा सकती है
- प्रेग्नेंसी से जुड़े फैसले समय रहते लिए जा सकते हैं
ध्यान रखें: ये टेस्ट महत्वपूर्ण जानकारियाँ देते हैं, लेकिन इनके साथ कुछ चिंताएं और फैसले भी जुड़ते हैं — इसलिए हर पहलू को किसी मेडिकल प्रोफेशनल से अच्छे से डिस्कस करना ज़रूरी है।
प्रीनेटल जेनेटिक टेस्ट्स (Prenatal genetic tests) कितने प्रकार के होते हैं?

प्रेग्नेंसी (Pregnancy) के दौरान किए जाने वाले जेनेटिक टेस्ट्स कई प्रकार के होते हैं — कुछ स्क्रीनिंग के लिए और कुछ डायग्नोसिस के लिए। हर टेस्ट का अपना मकसद और समय होता है। नीचे बताए गए टेस्ट्स आपको और आपके डॉक्टर को संभावित रिस्क समझने और ज़रूरत पड़ने पर जल्दी एक्शन लेने में मदद करते हैं।
1. सेल-फ्री DNA टेस्टिंग (Cell-free DNA – cfDNA Testing)
- यह एक रूटीन टेस्ट होता है जो प्रेग्नेंसी की शुरुआत में मां के ब्लड सैंपल से किया जाता है।
- फीटल DNA के छोटे-छोटे फ्रैगमेंट्स को जांचकर ट्राइसॉमी 21 (Trisomy 21) जैसी क्रोमोसोमल एब्नॉर्मैलिटीज़ का रिस्क जानने में मदद करता है।
- स्ट्रक्चरल एब्नॉर्मैलिटीज़ (Structural abnormalities) की पहचान करने में शुरुआती स्तर पर काफ़ी उपयोगी है।
2. कैरियर स्क्रीनिंग (Carrier screening)
- यह टेस्ट यह चेक करता है कि माता-पिता में से कोई किसी जेनेटिक कंडीशन या बर्थ डिफेक्ट (Birth defect) से जुड़े जीन के कैरियर हैं या नहीं।
- फैमिली हिस्ट्री में इनहेरिटेड डिज़ीज़ (Inherited diseases) हो तो इसे कराने की सलाह दी जाती है।
- यह रूटीन प्रीनेटल केयर (Prenatal care) का हिस्सा हो सकता है या एक्सपैंडेड पैनल के तहत किया जा सकता है।
3. कोरियोनिक विल्लस सैंपलिंग (Chorionic Villus Sampling - CVS)
- यह एक प्रीनेटल डायग्नोस्टिक टेस्टिंग (Prenatal diagnostic testing) मेथड है जो प्रेग्नेंसी के 10–13 हफ्तों के बीच किया जाता है।
- इसमें प्लेसेंटा (Placenta) के टिशू का छोटा सैंपल लिया जाता है।
- यह ओपन न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट्स (Open neural tube defects) को नहीं डिटेक्ट कर पाता।
4. एम्नियोसेंटेसिस (Amniocentesis)
- यह दूसरा ट्राइमेस्टर (Second trimester) में किया जाने वाला टेस्ट है जिसमें सुई से एम्नियोटिक फ्लूइड (Amniotic fluid) निकाला जाता है।
- यह फीटल एब्नॉर्मैलिटीज़ (Fetal abnormalities) और स्पाइना बिफिडा (Spina bifida) जैसी स्थितियों का पता लगाता है।
- स्पाइनल कॉर्ड या एब्डॉमिनल वॉल (Abdominal wall) में संभावित दिक्कतों की पहचान करता है।
5. कॉम्बाइंड फर्स्ट ट्राइमेस्टर स्क्रीनिंग (Combined First Trimester Screening)
- इसमें नुकल ट्रांसलूसेंसी स्क्रीनिंग (Nuchal translucency screening) और मैटरनल सीरम स्क्रीनिंग (Maternal serum screening) शामिल होती है।
- ये टेस्ट फीटस की गर्दन के पीछे जमा फ्लुइड और मां के हार्मोन लेवल्स को मापते हैं ताकि रिस्क का आकलन किया जा सके।
- अगर रिज़ल्ट हाई आता है, तो आगे की टेस्टिंग की सलाह दी जा सकती है।
6. एक्सपैंडेड जेनेटिक पैनल्स (Expanded Genetic Panels)
- ये टेस्ट रेयर जेनेटिक डिसऑर्डर्स (Rare genetic disorders) को कवर करते हैं और जीन का विस्तृत विश्लेषण करते हैं।
- कुछ विशेष मामलों में पर्क्युटेनियस अम्बिलिकल ब्लड सैंपलिंग (Percutaneous umbilical blood sampling) की ज़रूरत हो सकती है।
- प्रेग्नेंसी केयर प्लानिंग (Prenatal care planning) के दौरान इन्हें अपने हेल्थकेयर प्रोवाइडर से ज़रूर डिस्कस करें।
प्रेग्नेंसी (Pregnancy) के लिए सही जेनेटिक टेस्ट(Genetic Test) कैसे चुनें?

सही प्रीनेटल टेस्ट (Prenatal test) चुनना आपकी हेल्थ, टाइमिंग और कम्फर्ट लेवल पर निर्भर करता है। हर महिला की प्रेग्नेंसी अलग होती है — इसलिए जो टेस्ट किसी के लिए सही हो, वो आपके लिए ज़रूरी नहीं कि उतना ही जरूरी हो। इसीलिए सवाल पूछना और क्लियर जवाब पाना बेहद ज़रूरी है।
💬 अपने हेल्थकेयर प्रोवाइडर से खुलकर बात करें
- फैमिली हिस्ट्री में कोई जेनेटिक कंडीशन (Genetic condition) या बर्थ डिफेक्ट (Birth defect) हो तो ज़रूर बताएं
- अपनी उम्र, मौजूदा हेल्थ कंडीशंस और किसी पिछली प्रेग्नेंसी से जुड़ी चिंता भी डिस्कस करें
- पूछें कि क्या रूटीन प्रीनेटल केयर (Routine prenatal care) में कुछ स्क्रीनिंग टेस्ट पहले से शामिल हैं
🧪 टेस्ट के बीच का फर्क समझें
- स्क्रीनिंग टेस्ट्स (Screening tests) जैसे cfDNA या मैटरनल सीरम स्क्रीनिंग (Maternal serum screening) केवल रिस्क के बारे में बताते हैं
- डायग्नोस्टिक टेस्ट्स (Diagnostic tests) जैसे CVS या एम्नियोसेंटेसिस (Amniocentesis) ज्यादा क्लियर जवाब देते हैं — लेकिन ये इनवेसिव (Invasive) होते हैं
- कुछ टेस्ट जैसे कैरियर स्क्रीनिंग (Carrier screening) ज़िंदगी में सिर्फ एक बार ही कराना काफी होता है
📅 टाइमिंग को ध्यान में रखें
- पहले ट्राइमेस्टर (First trimester) में किए जाने वाले ऑप्शंस आमतौर पर कम इनवेसिव होते हैं और आपको आगे की प्लानिंग के लिए ज्यादा समय देते हैं
- दूसरे ट्राइमेस्टर (Second trimester) में किए जाने वाले टेस्ट अक्सर ओपन न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट्स (Open neural tube defects) या स्ट्रक्चरल एब्नॉर्मैलिटीज़ (Structural abnormalities) जैसी गहराई से जांच करने में मदद करते हैं
याद रखें: इस फैसले में आप अकेली नहीं हैं। ACOG के अनुसार, एक जेनेटिक काउंसलर (Genetic counselor) के साथ टेस्टिंग ऑप्शंस पर चर्चा करना ये समझने का सबसे बेहतर तरीका है कि आपके लिए क्या ज़रूरी है, क्या ऑप्शनल है, और क्या सही महसूस होता है।
ये डायग्नोस्टिक टेस्ट्स (Diagnostic tests) कितने सटीक होते हैं?

एम्नियोसेंटेसिस (Amniocentesis) और कोरियोनिक विल्लस सैंपलिंग (Chorionic villus sampling - CVS) जैसे डायग्नोस्टिक टेस्ट्स बहुत सटीक माने जाते हैं — ये क्रोमोसोमल एब्नॉर्मैलिटीज़ (Chromosomal abnormalities) को 99% से ज़्यादा एक्युरेसी के साथ डिटेक्ट कर सकते हैं।
लेकिन ये सभी के लिए पहला स्टेप नहीं होते। ज़्यादातर महिलाएं पहले स्क्रीनिंग टेस्ट्स (Screening tests) से शुरुआत करती हैं, जो सिर्फ़ रिस्क के बारे में बताते हैं — न कि निश्चित परिणाम।
अगर आपके स्क्रीनिंग टेस्ट का रिज़ल्ट अबनॉर्मल आता है, तो इसका मतलब ये नहीं कि आपके बेबी को ज़रूर कोई कंडीशन है — इसका मतलब सिर्फ़ ये है कि एक संभावना है, और इसलिए फॉलो-अप टेस्टिंग सजेस्ट की जाती है।
हालांकि डायग्नोस्टिक टेस्ट्स इनवेसिव (Invasive) होते हैं और इनमें थोड़ा रिस्क हो सकता है, लेकिन ये बहुत क्लियर और डिफ़िनिटिव जवाब देते हैं। यही वजह है कि कई महिलाएं इन्हें तभी चुनती हैं जब फैसला लेना ज़रूरी हो — या जब मन की शांति पाना ज़रूरी हो।
क्या प्रेग्नेंसी (Pregnancy) में जीन टेस्टिंग (Gene testing) से कोई रिस्क होता है?
जीन टेस्टिंग आपको मन की शांति भी दे सकती है — या नए सवाल भी खड़े कर सकती है। किसी भी टेस्ट के लिए "हां" कहने से पहले उसके संभावित जोखिमों को समझना ज़रूरी होता है। यहां वो बातें दी गई हैं जो आपको ध्यान में रखनी चाहिए:
1. इनवेसिव टेस्ट्स से जुड़ा फिज़िकल रिस्क (Physical risks from invasive tests)
- कोरियोनिक विल्लस सैंपलिंग (Chorionic villus sampling - CVS) या एम्नियोसेंटेसिस (Amniocentesis) जैसे टेस्ट्स में टिशू या एम्नियोटिक फ्लूइड को सुई से निकाला जाता है।
- इससे संक्रमण, क्रैम्पिंग या बहुत कम मामलों में मिसकैरेज (Miscarriage) का रिस्क हो सकता है।
- ये रिस्क कम होता है (लगभग हर 500 से 1,000 प्रक्रियाओं में 1 बार), लेकिन फिर भी इस पर अपने हेल्थकेयर प्रोवाइडर से चर्चा ज़रूर करें।
2. इमोशनल स्ट्रेस (Emotional stress)
- टेस्ट के रिज़ल्ट का इंतज़ार करना, खासकर जब वे क्लियर न हों, काफी टफ हो सकता है।
- यहां तक कि स्क्रीनिंग टेस्ट्स (Screening tests) का हाई रिस्क रिज़ल्ट भी चिंता पैदा कर सकता है, भले ही बाद में पता चले कि सब ठीक है।
- टेस्ट से पहले और बाद में जेनेटिक काउंसलर (Genetic counselor) से बात करना कई महिलाओं को मानसिक रूप से तैयार होने में मदद करता है।
3. फॉल्स पॉजिटिव या अनक्लियर रिज़ल्ट्स (False positives or unclear results)
- कोई भी टेस्ट परफेक्ट नहीं होता।
- कभी-कभी स्क्रीनिंग टेस्ट्स संभावित प्रॉब्लम दिखाते हैं, जबकि बेबी पूरी तरह से हेल्दी होता है।
- इससे ज़रूरत से ज़्यादा टेस्टिंग या स्ट्रेस हो सकता है, जो शायद टाला जा सकता था।
4. एथिकल दुविधाएं (Ethical dilemmas)
- अगर कोई गंभीर कंडीशन कन्फर्म हो जाती है, तो आप क्या करेंगे?
- कई परिवार ऐसे मुश्किल फैसलों का सामना करते हैं जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की होती।
- ऐसे समय में बिना दबाव के सोचने और निर्णय लेने की स्पेस होना बहुत ज़रूरी है।
5. प्राइवेसी से जुड़े सवाल (Privacy concerns)
- आपका जेनेटिक डेटा और फीटल DNA की डिटेल्स बहुत सेंसिटिव होती हैं।
- यह सुनिश्चित करें कि आपकी क्लिनिक सख्त प्राइवेसी प्रैक्टिसेस फॉलो करती हो।
- आप यह भी पूछ सकती हैं कि आपका डेटा कितने समय तक स्टोर किया जाएगा और किसके पास इसकी एक्सेस होगी।
जानकारी होना ही ताकत है। सही टेस्ट चुनना सिर्फ़ साइंस की बात नहीं है — ये इस बात पर भी निर्भर करता है कि आपके लिए क्या सही महसूस होता है।
प्रेग्नेंसी (Pregnancy) में जीन टेस्टिंग (Gene testing) को लेकर Dr. Anshu Agarwal क्या कहती हैं?

1. शुरुआती टेस्टिंग से मिलती है क्लैरिटी और समय
Dr. Anshu का मानना है कि पहले ट्राइमेस्टर (First trimester) में किए जाने वाले जीन टेस्ट — जैसे सेल-फ्री DNA (Cell-free DNA) या कैरियर स्क्रीनिंग (Carrier screening) — बिना प्रेग्नेंसी को नुकसान पहुंचाए ज़रूरी जानकारी दे सकते हैं।
2. हर महिला को हर टेस्ट की ज़रूरत नहीं होती
वो सुझाव देती हैं कि टेस्टिंग एक पर्सनल प्लान के मुताबिक होनी चाहिए — महिला की उम्र, मेडिकल हिस्ट्री और फैमिली बैकग्राउंड के आधार पर — न कि एक जैसा फॉर्मूला सभी पर लागू किया जाए।
3. मेडिकल एक्युरेसी के साथ इमोशनल सपोर्ट भी ज़रूरी है
Dr. Anshu सलाह देती हैं कि कपल्स को अपने OB-GYN से खुले दिल से टेस्ट रिज़ल्ट्स पर बात करनी चाहिए, और जब ज़रूरत हो तो काउंसलिंग भी लेनी चाहिए — खासकर जब रिज़ल्ट्स कंफ्यूज़िंग या अनसर्टेन हों।
4. डर नहीं, जानकारी के साथ फैसले लें
उनका मुख्य मैसेज: जीन टेस्ट कोई डराने वाला स्टेप नहीं है, बल्कि समझदारी से और कॉन्फिडेंस के साथ डिसीजन लेने का एक टूल है। इसका मकसद है मां और बेबी — दोनों की सेहत का सपोर्ट करना।
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)
1. क्या जीन टेस्टिंग के रिज़ल्ट के आधार पर प्रेग्नेंसी टर्मिनेट की जा सकती है?
हाँ, लेकिन यह स्थानीय कानूनों और गर्भावस्था की उम्र (Gestational age) पर निर्भर करता है। अगर डायग्नोस्टिक टेस्ट (Diagnostic test) से कोई गंभीर कंडीशन कन्फर्म होती है, तो कुछ माता-पिता मेडिकल काउंसलिंग के बाद टर्मिनेशन का विकल्प चुन सकते हैं।
2. क्या प्रेग्नेंसी से पहले जेनेटिक टेस्टिंग करानी चाहिए?
प्री-प्रेग्नेंसी कैरियर स्क्रीनिंग (Carrier screening) यह पता लगाने में मदद करती है कि आप या आपके पार्टनर में इनहेरिटेड डिसऑर्डर (Inherited disorders) जैसे सिस्टिक फाइब्रोसिस (Cystic fibrosis) का जीन है या नहीं। ये वैकल्पिक होता है, लेकिन फैमिली प्लानिंग के लिए उपयोगी है।
3. जेनेटिक स्क्रीनिंग और डायग्नोस्टिक टेस्टिंग में क्या अंतर है?
स्क्रीनिंग टेस्ट्स (Screening tests) सिर्फ रिस्क का अनुमान लगाते हैं — डायग्नोसिस नहीं करते।
डायग्नोस्टिक टेस्ट्स (Diagnostic tests) जैसे एम्नियोसेंटेसिस (Amniocentesis) या CVS ये कन्फर्म करते हैं कि कोई कंडीशन वास्तव में मौजूद है या नहीं।
4. प्रेग्नेंसी के दौरान बेबी के लिए क्रोमोसोम टेस्ट क्या होता है?
ये टेस्ट डाउन सिंड्रोम (Down syndrome) या ट्राइसॉमी 18 (Trisomy 18) जैसी कंडीशंस को पहचानता है।
सेल-फ्री DNA टेस्टिंग (Cell-free DNA testing), CVS या एम्नियोसेंटेसिस जैसे टेस्ट से इसे किया जा सकता है।
5. प्रेग्नेंसी में क्रोमोसोमल एब्नॉर्मैलिटीज़ कितनी जल्दी पता चल सकती हैं?
नॉन-इनवेसिव प्रीनेटल टेस्टिंग (NIPT) से 10वें हफ्ते से पता लगाया जा सकता है।
इसके अलावा फर्स्ट ट्राइमेस्टर स्क्रीनिंग (First trimester screening) जैसे विकल्प भी शुरुआती रिस्क पहचानने में मदद करते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
प्रेग्नेंसी में जीन टेस्ट कराना या न कराना एक पर्सनल फैसला है — इसका कोई एक सही जवाब नहीं है। अच्छी बात ये है कि आपको यह फैसला अकेले नहीं लेना पड़ता।
स्क्रीनिंग टेस्ट्स, जो ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रॉपिन (Human chorionic gonadotropin) जैसे हार्मोन को मापते हैं, से लेकर ऐसे डायग्नोस्टिक प्रोसीजर्स (Diagnostic procedures) तक जो आपको क्लियर जवाब देते हैं — हर विकल्प आपकी मदद के लिए होता है, दबाव बनाने के लिए नहीं।
अपने डॉक्टर से बात करें, सवाल पूछें, और समय लेकर सोचें। सबसे ज़रूरी बात ये है कि आप हर स्टेप पर कॉन्फिडेंट, जागरूक और सपोर्टेड महसूस करें।
आपकी प्रेग्नेंसी जर्नी सिर्फ एक टेस्ट की कहानी नहीं — ये आपके और आपके बेबी के साथ जुड़े एक बड़े, खूबसूरत सफर का हिस्सा है।