गर्भावस्था (Pregnancy) के दौरान एंग्ज़ायटी (Anxiety) महसूस करना जितना लोग समझते हैं, उससे कहीं ज़्यादा आम है। जब आपके शरीर और ज़िंदगी में इतने सारे बदलाव हो रहे होते हैं, तो थोड़ी असमंजस या बेचैनी महसूस करना बिल्कुल सामान्य है।
असल में, अमेरिकन कॉलेज ऑफ़ ऑब्स्टेट्रिशियन्स एंड गायनेकोलॉजिस्ट्स (American College of Obstetricians and Gynecologists - ACOG) के मुताबिक, लगभग 20–40% गर्भवती महिलाएं किसी न किसी समय एंटिनेटल एंग्ज़ायटी (Antenatal anxiety) का अनुभव करती हैं। गर्भावस्था में इस तरह की एंग्ज़ायटी (Anxiety) लगातार चिंता, तेज़ सोच या फिज़िकल सिम्पटम्स (Physical symptoms) जैसे तेज़ धड़कन (Rapid heartbeat) के रूप में सामने आ सकती है।
कुछ एंग्ज़ायटी सिम्पटम्स (Anxiety symptoms) कभी-कभी आकर चले जाते हैं, लेकिन कुछ लक्षण अगर अनदेखा किए जाएं तो वे आपके मेंटल हेल्थ (Mental health) और रोज़मर्रा की ज़िंदगी को प्रभावित कर सकते हैं। अच्छी खबर यह है — एंग्ज़ायटी (Anxiety) को नज़रअंदाज़ किए बिना उससे निपटने के आसान और असरदार तरीके मौजूद हैं — और अब हम उन्हीं तरीकों को एक-एक करके समझेंगे।
गर्भावस्था में एंग्ज़ायटी (Anxiety) क्या होती है और क्यों होती है?

गर्भावस्था (Pregnancy) के दौरान एंग्ज़ायटी (Anxiety) सिर्फ़ एक इमोशनल अनुभव नहीं है — ये फिज़िकल भी होती है। हार्मोनल बदलाव (Hormonal changes), खासकर शुरुआती गर्भावस्था में, मसल टेंशन (Muscle tension), नींद में बाधा (Sleep disruption), और यहां तक कि पैनिक डिसऑर्डर (Panic disorder) को ट्रिगर कर सकते हैं। ये सब आप सोच नहीं रही हैं — ये सच में होता है।
कुछ गर्भवती महिलाएं बीते हुए ट्रॉमा (Past trauma) जैसे पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (Post Traumatic Stress Disorder) या सेक्सुअल असॉल्ट (Sexual assault) के कारण एंग्ज़ायटी (Anxiety) अनुभव करती हैं। वहीं कुछ के परिवार में मेंटल हेल्थ कंडीशन (Mental health condition) का इतिहास होता है, या वे जीवन के बड़े बदलावों जैसे नौकरी खोना या रिश्तों में तनाव से जूझ रही होती हैं।
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ (National Institute of Mental Health) के अनुसार, महिलाओं में पुरुषों की तुलना में एंग्ज़ायटी डिसऑर्डर (Anxiety disorder) विकसित होने की संभावना दोगुनी होती है — खासकर गर्भावस्था (Pregnancy) और पोस्टपार्टम पीरियड (Postpartum period) के दौरान।
गर्भावस्था के दौरान पैनिक अटैक्स (Panic attacks) के लक्षण और संकेत
पैनिक अटैक्स (Panic attacks) गर्भावस्था (Pregnancy) के दौरान बहुत डरावने लग सकते हैं — खासकर जब आपको पता न हो कि क्या हो रहा है। ये एपिसोड अक्सर अचानक शुरू होते हैं और कई बार दूसरे हेल्थ इशूज़ जैसे लग सकते हैं, जिससे स्थिति और ज़्यादा कन्फ्यूज़िंग बन जाती है।
यह जानना ज़रूरी है कि गर्भावस्था (Pregnancy) के दौरान पैनिक अटैक्स (Panic attacks) कोई दुर्लभ बात नहीं हैं। Journal of Affective Disorders में प्रकाशित 2021 की एक सिस्टमैटिक रिव्यू के अनुसार, पैनिक डिसऑर्डर (Panic disorder) लगभग 1–5% गर्भवती महिलाओं को प्रभावित करता है, और इसे कई बार स्टिग्मा या गलत डायग्नोसिस के चलते रिपोर्ट नहीं किया जाता।
यहाँ कुछ संकेत दिए गए हैं जिन पर ध्यान देना ज़रूरी है:
- तेज़ धड़कन (Rapid heartbeat) और सीने में जकड़न (Chest tightness)
ऐसा लग सकता है कि दिल बहुत तेज़ या ज़ोर से धड़क रहा है। कुछ गर्भवती महिलाएं इसे हार्ट प्रॉब्लम समझ लेती हैं या चिंता करती हैं कि इससे शिशु पर असर होगा। - सांस फूलना या बहुत तेज़ सांस लेना (Shortness of breath / Hyperventilation)
सांस लेना हल्का, तेज़ या भारी लग सकता है — खासकर जब आप भीड़ में हों या स्ट्रेस में हों। डीप ब्रीदिंग (Deep breathing) की प्रैक्टिस इसमें मदद कर सकती है। - चक्कर आना या सिर हल्का लगना (Dizziness / Lightheadedness)
जब शरीर में ऑक्सीजन लेवल गिरता है या अचानक एंग्ज़ायटी (Anxiety) होती है, तो ऐसा महसूस हो सकता है। इस स्थिति में तुरंत बैठें या लेट जाएं। - पसीना आना और शरीर कांपना (Sweating and Shaking)
ये फिज़िकल लक्षण अचानक आ सकते हैं और ऐसा महसूस हो सकता है कि आप कंट्रोल खो रही हैं। ये हार्मोनल बदलाव (Hormonal shifts) या जेनरलाइज़्ड एंग्ज़ायटी डिसऑर्डर (Generalized anxiety disorder) से भी जुड़े हो सकते हैं। - मतली या पेट में तकलीफ़ (Nausea / Stomach discomfort)
कुछ महिलाओं को पैनिक अटैक (Panic attack) के दौरान मतली महसूस होती है। यह खासकर तब बढ़ सकता है जब पेट खाली हो या नींद ठीक न हुई हो। - कंट्रोल खोने या मरने का डर (Fear of losing control / Dying)
ऐसा लग सकता है कि आप किसी अनजान खतरे में हैं या कुछ बहुत बुरा होने वाला है। ये भावनाएं तीव्र एंग्ज़ायटी (Anxiety) एपिसोड्स में आम हैं। - हाथ, पैर या चेहरे में सुन्नपन या झनझनाहट (Numbness / Tingling sensations)
ये आमतौर पर हाइपरवेंटिलेशन (Hyperventilation) की वजह से होता है, जब शरीर में ब्लड फ्लो और ऑक्सीजन लेवल बदलता है। - गर्मी लगना या ठंड के झोंके (Hot flashes / Chills)
ये लक्षण अचानक आ सकते हैं और पब्लिक प्लेस में शर्मिंदगी महसूस करा सकते हैं। ठंडी तौलिया या पानी की बोतल साथ रखना मददगार हो सकता है।
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एंटिनेटल एंग्ज़ायटी (Antenatal anxiety) में योगदान देने वाले रिस्क फैक्टर्स(Risk Factors)
हर गर्भवती महिला को एंटिनेटल एंग्ज़ायटी (Antenatal anxiety) नहीं होती, लेकिन कुछ स्थितियाँ इसके होने की संभावना को बढ़ा देती हैं। अगर आपने नीचे दी गई किसी भी चीज़ का अनुभव किया है, तो आप अकेली नहीं हैं — और इसका मतलब ये नहीं है कि आप सपोर्ट के साथ बेहतर महसूस नहीं कर सकतीं।
Journal of Affective Disorders में प्रकाशित एक स्टडी के अनुसार, जिन महिलाओं को पहले मेंटल हेल्थ कंडीशन (Mental health condition) जैसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन (Postpartum depression) या ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर (Obsessive Compulsive Disorder) हो चुका है, उन्हें गर्भावस्था (Pregnancy) के दौरान एंग्ज़ायटी (Anxiety) होने का खतरा ज़्यादा होता है।
यहाँ कुछ आम रिस्क फैक्टर्स दिए गए हैं, जिन पर ध्यान देना चाहिए:
- एंग्ज़ायटी या डिप्रेशन का व्यक्तिगत इतिहास (Personal history of anxiety or depression)
अगर आपको पहले कभी एंग्ज़ायटी डिसऑर्डर (Anxiety disorder) या डिप्रेशन (Depression) डायग्नोज़ हुआ है या आपने उसका इलाज करवाया है, तो गर्भावस्था (Pregnancy) के दौरान ये भावनाएँ फिर से लौट सकती हैं। कई बार शांत दिखने वाली नई माँ भी अंदर ही अंदर चिंताओं से जूझती हैं। - अनप्लांड या हाई-रिस्क गर्भावस्था (Unplanned or high-risk pregnancy)
अगर प्रेग्नेंसी अनप्लांड हो या आप किसी कॉम्प्लिकेशन से जूझ रही हों, तो चिंता जल्दी बढ़ सकती है। ये खासतौर पर तब होता है जब आप संभावित प्रेग्नेंसी रिजल्ट्स को समझने की कोशिश कर रही होती हैं। - सोशल या पार्टनर सपोर्ट की कमी (Lack of social or partner support)
जब बात करने के लिए कोई करीबी रिश्तेदार या पार्टनर न हो, तो स्ट्रेस मैनेज करना मुश्किल हो सकता है। लेकिन आपको अकेले इससे नहीं गुजरना है — सिर्फ़ टॉक थेरपी (Talk therapy) भी मददगार हो सकती है। - पहले गर्भपात या बर्थ ट्रॉमा का इतिहास (Previous pregnancy loss or birth trauma)
मिसकैरेज (Miscarriage) या ट्रॉमैटिक डिलीवरी एक्सपीरियंस का इतिहास डर को ट्रिगर कर सकता है। ये भावनाएँ हर अल्ट्रासाउंड या टेस्ट के दौरान वापस आ सकती हैं। - फाइनेंशियल या हाउसिंग अस्थिरता (Financial or housing instability)
अगर आप इस सोच में हैं कि कहाँ रहना है या खर्च कैसे उठाएँगी, तो इससे नींद और मेंटल हेल्थ (Mental health) दोनों प्रभावित हो सकते हैं। इसका असर थकान और डाउन फीलिंग्स के रूप में सामने आ सकता है। - हार्मोनल बदलाव और नींद की गड़बड़ी (Hormonal changes and sleep disruptions)
हार्मोन लगातार बदलते हैं, जिससे मूड पर असर पड़ता है, सेरोटोनिन (Serotonin) जैसे नैचुरल पेनकिलर्स कम हो सकते हैं और थकावट महसूस होती है। हेल्दी डाइट और हल्की दिनचर्या मदद कर सकती है — लेकिन क्लीनिकल हेल्प भी पूरी तरह सही है। - लेबर या पेरेंटिंग की ज़िम्मेदारियों का डर (Fear of labor or parenting responsibilities)
यह सोचना कि आप सब संभाल पाएंगी या नहीं — ये भावना सामान्य है, लेकिन स्थायी नहीं। कुछ छोटे-छोटे कॉपिंग टूल्स सीखकर आप खुद को ज़्यादा आत्मविश्वासी महसूस करा सकती हैं। - लगातार चल रही तनावपूर्ण ज़िंदगी की घटनाएँ (Ongoing stressful life events)
घर बदलना, किसी अपने को खोना या नौकरी में बड़ा बदलाव — ये सभी बड़े इवेंट्स हैं। ये फैक्टर्स प्रेग्नेंसी के दौरान एंग्ज़ायटी (Anxiety) को ट्रिगर करने के लिए जाने जाते हैं।
"हर प्रेग्नेंसी अलग होती है — और हर भावनात्मक अनुभव भी। अपनी मेंटल और फिज़िकल वेल-बीइंग के लिए क्या सही है, यह समझने के लिए डॉ. अंशु अग्रवाल से पर्सनलाइज़्ड कंसल्टेशन बुक करें।"
एंग्ज़ायटी (Anxiety) आपके बच्चे की सेहत को कैसे प्रभावित कर सकती है
अगर आप ये सोचकर परेशान हैं कि कहीं आपकी एंग्ज़ायटी (Anxiety) आपके बच्चे को प्रभावित तो नहीं कर रही — तो आप अकेली नहीं हैं, और ये सवाल पूछना बिल्कुल सही है। गर्भावस्था (Pregnancy) के दौरान एंग्ज़ायटी आपके बच्चे की सेहत पर हल्के लेकिन महत्वपूर्ण तरीके से असर डाल सकती है। अच्छी बात ये है कि अगर आप इसके बारे में जानती हैं, तो आप समय रहते एक्शन ले सकती हैं।
Frontiers in Psychiatry में प्रकाशित 2021 की एक रिव्यू के अनुसार, अगर गंभीर एंग्ज़ायटी (Severe anxiety) का इलाज न किया जाए, तो इससे प्रीटर्म बर्थ (Preterm birth), लो बर्थ वेट (Low birth weight), और बच्चों में लंबे समय तक चलने वाले इमोशनल इफेक्ट्स (Emotional outcomes) हो सकते हैं। इसका मतलब ये नहीं है कि आप फेल हो रही हैं — ये सिर्फ दिखाता है कि गर्भावस्था के दौरान मेंटल वेल-बीइंग (Mental well-being) कितनी ज़रूरी है।
- प्रीटर्म बर्थ (Preterm birth) का बढ़ा हुआ खतरा
लगातार स्ट्रेस (Chronic stress), सोशल फोबिया (Social phobia), या अनसुलझा ट्रॉमा (Unresolved trauma) लेबर जल्दी शुरू होने की संभावना बढ़ा सकते हैं। समय पर प्रीनेटल केयर (Prenatal care) और पर्याप्त आराम से इस रिस्क को कम किया जा सकता है। - लो बर्थ वेट (Low birth weight) की चिंता
लगातार स्ट्रेस के कारण शरीर में कोर्टिसोल (Cortisol) लेवल ज़्यादा हो सकता है, जिससे भ्रूण की ग्रोथ प्रभावित हो सकती है। ऐसे बच्चे जो कम वज़न के साथ जन्म लेते हैं, उन्हें जन्म के बाद अतिरिक्त क्लीनिकल केयर की ज़रूरत पड़ सकती है। - भ्रूण के ब्रेन डेवलपमेंट (Fetal brain development) पर असर
रिसर्च बताती है कि मां का स्ट्रेस भ्रूण के ब्रेन की वायरिंग को प्रभावित कर सकता है। इसका असर बच्चे की इमोशनल प्रोसेसिंग या कॉपिंग स्ट्रैटेजीज़ पर पड़ सकता है। - नवजात में बढ़े हुए स्ट्रेस लेवल्स (Higher stress levels in newborns)
एंग्ज़ायटी से जूझ रही माताओं के बच्चों में भी स्ट्रेस हॉर्मोन (Stress hormones) ज़्यादा हो सकते हैं। इससे बच्चे के खाने, नींद या सामान्य शांति पर असर हो सकता है। - बर्थ के बाद बॉन्डिंग में कठिनाई (Difficulty in bonding after birth)
अगर एंग्ज़ायटी (Anxiety) पोस्टपार्टम पीरियड (Postpartum period) में भी जारी रहे, तो यह मां और बच्चे के बीच के बॉन्ड को प्रभावित कर सकती है। शुरुआती साइकोलॉजिकल थेरपीज़ (Psychological therapies) से मां और बच्चे — दोनों को सपोर्ट मिल सकता है। - लंबे समय तक चलने वाले इमोशनल या बिहेवियरल इफेक्ट्स (Long-term emotional or behavioral effects)
कुछ स्टडीज़ के अनुसार, प्रेग्नेंसी के दौरान की एंग्ज़ायटी (Prenatal anxiety) बाद में बच्चों में निगेटिव थॉट्स (Negative thoughts), उदासी भरा मूड (Sad mood), और कम आत्मविश्वास (Reduced self-esteem) से जुड़ी होती है।
प्रेग्नेंसी एंग्ज़ायटी (Pregnancy anxiety) से राहत पाने के 5 असरदार तरीके

आपको सब कुछ एक साथ ठीक करने की ज़रूरत नहीं है। छोटे-छोटे लेकिन लगातार कदम एंग्ज़ायटी (Anxiety) को कम कर सकते हैं और आपको ज़्यादा स्थिर महसूस करवा सकते हैं — खासकर गर्भावस्था (Pregnancy) के दौरान। नीचे दिए गए हैं पाँच आसान लेकिन असरदार तरीके जो राहत दिला सकते हैं।
BMC Psychiatry में प्रकाशित 2023 की एक रिव्यू के अनुसार, अगर इलाज जल्दी शुरू किया जाए और रोज़ की कॉपिंग रूटीन अपनाई जाए, तो पेरिनेटल एंग्ज़ायटी (Perinatal anxiety) में काफी राहत मिलती है — खासकर जब हेल्थ प्रोफेशनल्स गाइड करते हैं।
1. गहरी सांस लें (Breathe deeply)
- आपकी हार्ट रेट (Heart rate) को धीमा करता है और नर्वस सिस्टम (Nervous system) को शांत करता है।
- जब अचानक पैनिक या टेंशन महसूस हो, तो तुरंत मदद करता है।
- 4-7-8 तकनीक आज़माएं: 4 सेकंड इनहेल, 7 सेकंड होल्ड, 8 सेकंड एक्सहेल करें।
2. शरीर को मूव करें (Move your body)
- हल्की फिज़िकल एक्टिविटी (Physical activity) जैसे वॉकिंग या प्रीनेटल योगा (Prenatal yoga) से मेंटल क्लैरिटी मिलती है।
- मूवमेंट से एंडॉर्फिन्स (Endorphins) रिलीज़ होते हैं जो मूड को बेहतर करते हैं।
- कोई ज़ोरदार एक्सरसाइज़ ज़रूरी नहीं — हल्की स्ट्रेचिंग भी असरदार है।
3. बात करें (Talk it out)
- अपनी भावनाएँ शेयर करने से इमोशनल बोझ कम होता है।
- डर और चिंता को समझने में मदद मिलती है — खासकर बर्थ या पेरेंटिंग को लेकर।
- पेरिनेटल एंग्ज़ायटी (Perinatal anxiety) में ट्रेन्ड थेरपिस्ट (Therapist) से बात करना फ़र्क ला सकता है।
4. नींद को प्राथमिकता दें (Prioritize sleep)
- नींद की कमी एंग्ज़ायटी (Anxiety) को और बढ़ा देती है और ओवरऑल हेल्थ को प्रभावित करती है।
- सिंपल स्लीप रूटीन आज़माएं: हल्की लाइट, स्क्रीन से दूरी, शांत रीडिंग।
- नैप्स भी ज़रूरी हैं — जब शरीर कहे, तब आराम करें।
5. एक्सपर्ट की मदद लें (Get expert help)
- ज़रूरत हो तो हेल्थ प्रोफेशनल्स सुरक्षित ट्रीटमेंट ऑप्शन्स रिकमेंड कर सकते हैं।
- कुछ मामलों में प्रेग्नेंसी के दौरान सेलेक्टिव सेरोटोनिन रीअपटेक इनहिबिटर्स (Selective serotonin reuptake inhibitors - SSRIs) सुझाए जाते हैं।
- देर न करें — सपोर्ट उपलब्ध है और आप इसके लायक हैं।
"आपको एंग्ज़ायटी (Anxiety) अकेले मैनेज नहीं करनी चाहिए। अपनी भावनाओं को समझने और राहत पाने के लिए डॉ. अंशु अग्रवाल से एक केयरिंग, कॉन्फिडेंशियल बातचीत के लिए संपर्क करें।"
एंग्ज़ायटी (Anxiety) को मैनेज करने के लिए आसान डेली आदतें
बेहतर महसूस करने के लिए आपको अपनी ज़िंदगी पूरी तरह बदलने की ज़रूरत नहीं है। आपकी डेली रूटीन में छोटे लेकिन सोच-समझकर किए गए बदलाव आपको शांत और कंट्रोल में महसूस कराने में लंबा साथ दे सकते हैं। ये आदतें शुरू करना आसान है — और बनाए रखना उससे भी ज़्यादा।
1. सुबह की हल्की और शांत शुरुआत करें (Start a gentle morning routine)
- दिन की शुरुआत में सीधे फोन या घर के कामों में न कूदें।
- पाँच मिनट शांत बैठें — स्ट्रेच करें, गहरी साँस लें या गरम पानी पिएं।
- एक शांत शुरुआत तय करती है कि आपका नर्वस सिस्टम (Nervous system) पूरे दिन कैसे रिएक्ट करेगा।
2. कैफीन और शुगर को सीमित करें (Limit caffeine and sugar)
- ज़्यादा कैफीन एंग्ज़ायटी सिम्पटम्स (Anxiety symptoms) जैसे घबराहट या तेज़ धड़कन (Rapid heartbeat) को ट्रिगर कर सकती है।
- ज़्यादा शुगर लेने से मूड में बाद में गिरावट आ सकती है।
- इसके बजाय हर्बल टी या प्रोटीन से भरपूर हल्का ब्रेकफास्ट ट्राई करें।
3. रोज़ाना एक जर्नल लिखें (Keep a daily journal)
- लिखने से आपके विचार साफ़ होते हैं और आपकी सोच की पैटर्न समझ में आती है।
- नोट करें कि आपको क्या चीज़ें एंग्ज़ायटी (Anxiety) देती हैं और क्या चीज़ें आपको शांत करती हैं।
- यह आपकी मेंटल हेल्थ (Mental health) में बदलाव ट्रैक करने का भी एक अच्छा तरीका है।
4. गाइडेड रिलैक्सेशन या म्यूज़िक का इस्तेमाल करें (Use guided relaxation or music)
- ब्रेक के दौरान शांत म्यूज़िक सुनें या रिलैक्सेशन ऐप्स का इस्तेमाल करें।
- सॉफ्ट म्यूज़िक मसल टेंशन (Muscle tension) कम करने और तेज़ चलती सोच को शांत करने में मदद करता है।
- सिर्फ़ 10 मिनट रोज़ देने से भी आपका इमोशनल टोन रिफ्रेश हो सकता है।
एंग्ज़ायटी डिसऑर्डर (Anxiety disorder) से जूझ रही गर्भवती महिलाओं के लिए डॉ. अंशु अग्रवाल की सलाह
डॉ. अंशु अग्रवाल एक अनुभवी कंसल्टेंट ऑब्स्टेट्रिशियन और गायनेकॉलजिस्ट (Consultant Obstetrician and Gynecologist) हैं, जिनके पास 18 वर्षों से अधिक का अनुभव है। वर्तमान में वे मेडीफर्स्ट हॉस्पिटल, रांची में ऑब्स्टेट्रिक्स और गायनेकोलॉजी (Obstetrics and Gynecology) डिपार्टमेंट की प्रमुख हैं।
उनकी विशेषज्ञता हाई-रिस्क प्रेग्नेंसीज़ (High-risk pregnancies), इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट्स (Infertility treatments), और लैप्रोस्कोपिक सर्जरीज़ (Laparoscopic surgeries) में है। डॉ. अग्रवाल अपनी दयालु दृष्टिकोण और महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति समर्पण के लिए जानी जाती हैं।
गर्भावस्था के दौरान एंग्ज़ायटी (Anxiety) को मैनेज करने के लिए डॉ. अंशु अग्रवाल के सुझाव:
- अपनी भावनाओं को पहचानें और स्वीकार करें (Recognize and accept your feelings)
गर्भावस्था (Pregnancy) के दौरान चिंतित महसूस करना सामान्य है। इन भावनाओं को स्वीकार करना उन्हें मैनेज करने की दिशा में पहला कदम है। - एक रूटीन बनाएं (Establish a routine)
रोज़ की एक निश्चित दिनचर्या बनाए रखने से कंट्रोल का एहसास होता है और एंग्ज़ायटी (Anxiety) कम हो सकती है। - फिज़िकल एक्टिविटी करें (Engage in physical activity)
वॉकिंग या प्रीनेटल योगा (Prenatal yoga) जैसी हल्की एक्सरसाइज़ स्ट्रेस को कम करने और ओवरऑल वेल-बीइंग में सुधार लाने में मदद करती है। - सपोर्ट लें (Seek support)
भरोसेमंद दोस्तों, परिवार या सपोर्ट ग्रुप्स से बात करने से इमोशनल राहत मिलती है और कई बार प्रैक्टिकल सलाह भी। - हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स से सलाह लें (Consult healthcare professionals)
अपने ऑब्स्टेट्रिशियन (Obstetrician) से रेगुलर चेक-अप कराना आपकी मेंटल हेल्थ (Mental health) की निगरानी में मदद करता है और ज़रूरत पड़ने पर इंटरवेंशन भी मिल सकता है।
गर्भावस्था के दौरान मेंटल हेल्थ (Mental health) से जुड़े FAQs
1. क्या एंग्ज़ायटी (Anxiety) गर्भावस्था की शुरुआत में एक लक्षण हो सकता है?
हाँ, बिल्कुल हो सकता है। कई महिलाएं पहले ट्राइमेस्टर में एंग्ज़ायटी (Anxiety) महसूस करती हैं, खासकर हार्मोनल बदलाव (Hormonal changes) और नई ज़िम्मेदारियों के कारण। अगर ये भावना बढ़ती जा रही है या आपकी डेली लाइफ को प्रभावित कर रही है, तो सपोर्ट लेना ज़रूरी हो सकता है।
2. एंग्ज़ायटी (Anxiety) के लिए 3-3-3 रूल क्या है?
ये एक ग्राउंडिंग तकनीक है: 3 चीज़ों को देखें, 3 आवाज़ें सुनें, और शरीर के 3 हिस्सों को मूव करें। यह दिमाग की भागदौड़ को शांत करने और वर्तमान में लौटने में मदद करता है।
3. क्या गर्भावस्था में एंग्ज़ायटी (Anxiety) के लिए कुछ लिया जा सकता है?
हमेशा पहले अपने डॉक्टर से सलाह लें। कुछ मामलों में सेलेक्टिव सेरोटोनिन रीअपटेक इनहिबिटर्स (Selective serotonin reuptake inhibitors - SSRIs) जैसे मेडिकेशन सुरक्षित माने जा सकते हैं। इसका बेनिफिट-रिस्क बैलेंस आपके अगले रिव्यू (Next review) अपॉइंटमेंट में तय किया जाएगा।
4. गर्भवती महिला की भावनाएँ बच्चे को कैसे प्रभावित करती हैं?
अगर भावनाएँ बहुत तीव्र या लंबे समय तक चलने वाली हों, खासकर स्ट्रेस या एंग्ज़ायटी (Anxiety), तो ये बच्चे के विकास पर असर डाल सकती हैं। कुछ स्टडीज़ ने बर्थ आउटकम्स जैसे क्लेफ्ट लिप (Cleft lip) से भी संभावित लिंक बताया है, हालांकि इस पर अभी और रिसर्च की ज़रूरत है।
5. गर्भवती महिला को इमोशनली कैसे सपोर्ट करें?
बिना जज किए उसकी बात सुनें, रोज़ के कामों में मदद करें, और उसे आराम करने के लिए प्रोत्साहित करें। उसे याद दिलाते रहें कि मेंटल हेल्थ (Mental health) का ध्यान रखना भी फिज़िकल हेल्थ जितना ही ज़रूरी है।
निष्कर्ष
गर्भावस्था (Pregnancy) के दौरान एंग्ज़ायटी (Anxiety) जितनी आप सोचती हैं, उससे कहीं ज़्यादा आम है — और इस तरह महसूस करना पूरी तरह सामान्य है। छोटे कदमों और सही सपोर्ट से यह पूरी तरह मैनेजेबल है।
अपने अंदर की आवाज़ पर भरोसा करें, ज़रूरत हो तो मदद माँगें, और याद रखें — अपनी मेंटल हेल्थ (Mental health) का ख्याल रखना, अपने बच्चे की देखभाल करने जैसा ही है।
"क्या आप मानसिक सुकून की दिशा में अगला कदम उठाने को तैयार हैं? एंग्ज़ायटी (Anxiety) से जूझ रही गर्भवती महिलाओं के लिए डॉ. अंशु अग्रवाल से जुड़ें और पाएं सच्चा, सहानुभूतिपूर्ण सपोर्ट।"